नैनों का दिल से कुछ यूँ है कहना
तेरी यातनाओं से कब तक भरती रहूँ मैं अपनी रैना!
तू तो समेट ले आता है यूँ तो हर दर्द को
क़ैद कर लेता है फिर क्यूँ चार दीवारों में उनको!
यातनायें भी बिलखती मचलती रहती है
नैनों से अब तो आज़ाद होने को!
संवेदनाओं के घेरे में मैं हर रोज़ हुआ करती हूँ
यातनाएँ तू सहे और मैं बिन इच्छा बहा करती हूँ!
नैनों का दिल से कुछ यूँ है कहना...!!!
Teri Yatnao Se Kab Tak Bharti Rahu Main Apni Raina !
Tu To Samet Le Aata Hai Yu To Har Dard Ko
Qaid Kar Leta Hai Phir Kyu Char Diwaro Mein Unko !
Yatanaye Bhi Bilakhti Machlati Rahti Hai
Naino Se Ab To Aazaad Hone Ko !
Savednao Ke Ghere Mein Main Har Roz Hua Karti Hu
Yatnae Tu Sahe Aur Main Bin ichha Baha Karati Hu !
Naino Ka Dil Se Kuch Yu Hai Kahna...!!!
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1 Comments
आपके शब्द ने हमे निः शब्द कर दिया, हर शब्द में अनुभव और भावनाओं का बेजोड़ संगम है जो मानो ह्रदय के गहराइयों से उठा के लाया गया हो।
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