तमन्ना है मुझे फ़िज़ूल सी बातों की रिहाई की !
चाहिए ज़िंदगी के उसूलों की रुसवाई भी !
चुभन को महसूस करती ग़ैरों की बातें भी !
तमन्ना है मुझे फ़िज़ूल सी बातों की रिहाई की !!
त्यागती उन मिठास को मुख से,
अपनाना तो है थोड़ी कड़वाहट भी !
वाक़िफ़ हो चलु अपनी रूह की बातों से,
बेफिक्र और अजनबी अब बनूँ ग़ैरों की बातों से भी!
सन्नाटे की धुन कुछ यूँ सवार है चाहिए थोड़ी शांति भी !
तमन्ना है अब ना शोरगुलों की ना ही है ग़ैरों के सितम की !
तमन्ना है बस मेरे कैद सपने से मुझको रिहाई की !
तमन्ना है बस फ़िज़ूल सी बातों की रिहाई की....!!!
Tamanna Hai Mujhe Fizool Si Baato Ki Rihai Ki !
Chahiye Zindagi Ke Usoolo Ki Rusavai Bhi !
Chubhan Ko Mahsoos Karti Gairo Ki Baaten Bhi !
Tamanna Hai Mujhe Fizool Si Baato Ki Rihai Ki !!
Tyagti Un Mithas Ko Mukh Se,
Apnana To Hai Thodi Kadvahat Bhi !
Waqif Ho Chalu Apni Rooh Ki Baato Se,
Befhikar Aur Ajnabi Ab Banu Gairon Ki Baato Se Bhi !
Sannate Ki Dhun Kuch Yu Sawar Hai Chahiye Thodi Shanti Bhi !
Tamanna Hai Ab Na Shoragulo Ki Na Hi Hai Gairon Ke Sitam Ki !
Tamanna Hai Bas Mere Kaid Sapne Se Mujhko Rihae Ki !
Tamanna Hai Bas Fizool Si Baato Ki Rihae Ki....!!!
4 Comments
👏🏼👏🏼
ReplyDeleteसंवेदनशील कवि हैं आप। अच्छा लिख रहीं है।
ReplyDelete👌👌☺
ReplyDeleteकविता आपकी बहुत अच्छी है इसके लिए मै आपको धन्यवाद कहता हूं पर आपसे एक आग्रह भी करना चाहूंगा बहन शब्द अगर हिंदी ही प्रयोग करे तो और भी आंनद आएगा उर्दू तो ऐसे भी हमे थोप दिया गया है🙏
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