संजो के रखती रही हर रिश्तों को जो ,
सुलझाती रही कही हर रिश्तों को !
उलझनो के भीतर भी पाती रही खुद को,
संजो के रखती रही हर रिश्तों को जो !!
चलती रही बस चलना ही मंज़ूर किया ,
खुद को घूटते रिश्तों से आज़ाद किया !
कही बेबाक़ अन्दाज़ को दर्शाया तो ,
कही बड़बोले पन से हँसाया भी सबको !!
मिलनसार सा व्यवहार रहा सभी के प्रति ,
सकारात्मक सा प्रभाव डालती रही सभी के प्रति !
परीस्थितयो को समझाना कुछ ऐसा है तेरा ,
जैसे उन सभी से उभर कर आना है तेरा !
सिखाती भी रही समझाती भी रही ,
जैसे की तू साँझा कर रही हर जज़्बात को !
तू कोशिशों पर अमल कर यही तेरे जीवन का अर्थ हो जाए !
उन रास्तों पर ना जाए जो तेरे अहम से परे हो जाए !!
ना ही भटके ना कभी हो भयभीत तू ,
अपनी मंज़िलो को पाने में !
आसान बना खुद अपनी ही राहों को बस तू ,
ऐसे ही संजो कर रखती रहे हर रिश्तों और जज़्बातों को .....!!!
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